सविता के रेस्टोरेंट में एक नार्मल सा दिन, तभी उसकी नजर एक ऐसी औरत पर पड़ती है जो सविता के पसंदीदा लेखक का नया उपन्यास पढ़ रही है. सविता और ये नयी रहस्यमयी औरत बात करते करते जल्दी ही अच्छे दोस्त बन जाते हैं. सविता की नयी सहेली उसे अपने बुक क्लब के बारे में बताती है जहाँ सविता जैसे किताबें पढ़ने वाले लोग मिलकर कहानियों पर वाद विवाद करते हैं और वो सविता को अपने क्लब में शामिल होने के लिए मना लेती है. सविता ख़ुशी ख़ुशी मान जाती है. पर क्या सब कुछ वैसा ही है जैसा दिखता है? क्या किताबों के पन्नो में डूबे रहने वाले लोगो में वासना नहीं जग सकती?
कहानी के पन्नो में एक gif भी है.
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